
पितृ दिवस पर राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक डॉ. सर्वेष्ट मिश्र ने वर्तमान परिवेश में अत्यंत प्रासंगिक और प्रेरक संस्मरण साझा किया है। ऐसे विचारों से हम निश्चित रूप से वर्तमान की कई विसंगतियों और चिंताओं का सामना करने के लिये खुद को मजबूती के साथ खड़ा कर सकते हैं।
मुझे याद है हाईस्कूल से ही लगभग 11 वर्ष घर परिवार से बाहर रहकर इलाहाबाद तथा अन्य शहरों में पढ़ाई के दौरान हर महीने जब घर आता तो घर में पहुंचते ही प्रणाम करते तो पिता जी पूछते कि कब लौटना है और कितना पैसा चाहिए! उन दिनों अक्सर उनके पास पैसे नहीं रहते लेकिन यह बात वे मुझसे नहीं बताते और गांव में ही उनके एक मित्र या दुकानदार जिनके पास अक्सर नकदी रहती थी, उनसे उसी दिन मेरी डिमांड के अनुसार रुपए उधार लाकर रख लेते और मेरे ले जाने के लिए आटा चावल की बोरिया के गट्ठर बांध कर रख देते।
मुझे जिस दिन घर से निकलना हो वह राशन के गट्ठर गांव के बाहर जहां से बस्ती के लिए उस समय जीप सवारी मिलती थी वहां साइकिल से सुबह ही लाकर रख जाते थे। फिर जब मैं घर से निकलने लगूं तो जितना पैसा मैं मांगा रहता था उससे 100-200 ज्यादा ही मेरे हाथ देते और गाड़ी में बैठा देते। उनका मेरे ऊपर विश्ववास इतना की 11 वर्ष घर से बाहर पढ़ाई लिखाई के लिए रहने के दौरान न तो जितना पैसा देते थे उसका कभी हिसाब किताब पूछे और न ही कभी इलाहाबाद या उन शहरों में आए जहां मैं पढ़ाई करने गया। न कभी किसी यूनिवर्सिटी या कॉलेज में प्रवेश दिलाने या देखने गए कि मेरी पढ़ाई लिखाई कैसे चल रही है। न ही किसी काम या निर्णय पर मुझे रोका टोका। जो भी निर्णय लिया पिता जीने हमेशा उसका समर्थन किया। उनके इस भरोसे का असर मेरे ऊपर यह था कि मुझे हमेशा इस बात की चिंता लगी रहती थी थे कि मेरे किसी कार्य अथवा व्यवहार से पिताजी को कभी कष्ट न पहुंचे। जो आज तक कायम है।
छात्र जीवन में इलाहाबाद पढ़ाई के दौरान अक्सर छात्रों में फिल्म देखने, सुरती गुटका व अन्य नशे का इस्तेमाल करने और अनावश्यक घूमने और खरीदारी जैसे दुर्गुण आ जाते थे लेकिन पिता जी के मेरे ऊपर अतिविश्वास और उनके प्रति सम्मान का हमेशा इतना प्रभाव रहा कि आज तक मैं ऐसे किसी दुर्व्यसन और लत के करीब नहीं गया। आज भी मैं अपनी जानकारी में ऐसा कोई काम नहीं करता जिसका गलत संदेश मेरे पिताजी तक जाए। पिताजी की कही हुई ही नहीं उनके द्वारा सोची हुई हर बात मेरे लिए रामबाण है। आज भी मै उनकी इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं करता। ऐसा कोई कार्य नहीं करता जो उन्हें न पसंद हो चाहे ऐसे कार्य कार्य न करने से मेरा भले ही नुकसान हो। आज मैं अपने को दुनिया का सबसे सौभाग्यशाली व्यक्ति मानता हूं कि पिता जी का सानिध्य और आशीर्वाद मुझे प्राप्त है। मेरे पिता मेरी ताकत, स्वाभिमान, संबल, सुरक्षा के साथ ही वह कब कुछ हैं जो दुनिया में कोई नहीं है। उनके सम्मान, स्वाभिमान से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं। उन्होंने जीवन भर अपने जीवन जीने के संसाधनों में कटौती करके, अपने कपड़े न सिलाकर हमेशा मुझे महंगे से महंगे कपड़े व शौक पूरा करते हुए जिस तरह मुझे और मेरे परिवार को पाला है शायद ही कोई कर सके। एक बार (1996) की बात है मै इलाहाबाद पढ़ने नया-नया गया था! वहां देखा ठंडी में कुछ बच्चे कोट पैंट और टाई में पढ़ने आते हैं। मुझे लगा काश मैं भी ऐसा कपड़े पहनकर कर पढ़ाई करने जा पाता। पिता जी तक किसी तरह यह बात पहुंची। उन्होंने उस समय एक मेरे रिश्तेदार चाचा जो इलाहाबाद में रहते थे उनसे कहा कि वह मेरे लिए एक अच्छा सूट सिलवा दें पैसे वह भेज देंगे। चाचा जी मुझे लेकर कोठा पार्चा के सबसे अच्छे कपड़े की दुकान पर गए और उस समय लगभग 7500 का रेमंड का सूट और टाई बेल्ट साथ कपड़े खरीदकर सिलाया जो आज भी मेरे पास है और उसका कपड़ा आज भी खराब नहीं हुआ है।
एक और सच्चाई कि बचपन से लेकर आज तक हमें याद नहीं कि मेरे पिता जी ने भी कभी हमें डांटा हो या पिटाई की हो। लेकिन मेरे ऊपर उनके अतिअतिविश्वास से मेरे अंदर एक ऐसा भाव भर दिया कि बचपन से लेकर आज तक उनसे मोबाइल या फोन पर बात करने, ज्यादा देर तक उनके सामने बैठने और ज्यादा बात करने की हिम्मत नहीं पड़ती। बस उनका चेहरा देखकर ही मन को सुकुन मिल जाता है। उनके साथ फोटो खींचने की हिम्मत आज भी नहीं पड़ती। बड़ी मुश्किल से उनके तीर्थयात्रा पर जाते समय व हाल ही में नवीन गृह प्रवेश के समय की कुछ फोटो जो किसी ने रैंडमली खींच ली थी जो आज गैलरी में मिली है।
हम सौभाग्यशाली हैं कि मुझे पिता जी का सानिध्य, स्नेह आशीर्वाद और संबल आज भी मुझे प्राप्त है। आज #पितृ_दिवस पर श्री हनुमान जी से विनती है कि ईश्वर मेरे पिता जी को उत्तम स्वास्थ्य और लम्बी उम्र दें और हमारे तथा हमारे परिवार पर उनका आशीर्वाद बनाए रखें।
पितृ दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
#FathersDay2025
#पितृ_दिवस
#संस्मरण
#सम्मान
#स्वाभिमान
#मन_की_बात