
बस्ती (उ. प्र.)। एक ओर जहां जुआ के खेल से तमाम परिवारों के छिन्न-भिन्न होने की खबरें आती रहती हैं, तो दूसरी ओर इस पर अंकुश लगाने वाले जिम्मेदारों ने अपनी आंखें बन्द कर ली हैं। स्थानीय शहर में ही कई स्थानों पर जुए के अड्डे बदस्तूर चल रहे हैं। इस खेल ने एक तरह से व्यापार का रुप ले लिया है, जिसपर नियंत्रण किया जाना जरुरी तो है, लेकिन कोई सख्ती दिखाई दे रही है।
जानकारी के मुताबिक शहर कोतवाली और पुरानी बस्ती थाना क्षेत्रों में दर्जनभर जगहों पर ताश के पत्तों पर लाखों के वारे न्यारे हो रहे हैं। इतना ही नहीं समाज के लिए मुसीबत बने इस जुए के खेल को पुलिसिया संरक्षण की चर्चाएं काफी तेज हैं। यदि कोई इस पर सवाल उठाता है तो उल्टे उसी से सवाल जवाब शुरु हो जाता है, और सुबूत मांगे जाते हैं। जबकि स्थितियां ऐसी हैं कि सबूत तो दूर कोई बाहरी व्यक्ति वहां पहुंचने के बाद कितना सुरक्षित रहेगा, कुछ पता नहीं। इनमें भी सरगना यानि नेतृत्वकर्ता होते हैं, जो काफी दबंग और सरकस बताए जाते हैं। अगर बात पुलिसिंग की करें तो सबको पता होने के बाद भी अनभिज्ञ बने रहना इनकी फितरत हो गयी है। सूत्रों की मानें तो लौकिहवां, डमरूआ, घरसोहिया और गदहाखोर (मकराना गोदाम के निकट) सहित कई अन्य स्थानों पर जुए के अड्डे रोज सजते हैं। ये कुछ ही जगहों के नाम हैं। ऐसी और भी कई जगहें हैं, जहां ऐसी अवैध गतिविधियां संचालित हो रही हैं। ताज्जुब की बात है कि खेलने और खेलाने वाले तो बेखौफ होकर परिवारों की खुशियां दांव पर लगा रहे हैं, लेकिन इसका विरोध करने वालों के कब अपराधियों जैसा सुलूक हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। समाज के लिए लगातार नुकसानदेह साबित हो रही ऐसी गतिविधियों पर शीघ्र नियंत्रण किया जाना अति आवश्यक है। यह तभी सम्भव हो पाएगा जब अधिकारियों द्वारा कड़ाई से ध्यान दिया जाएगा।