
बस्ती (उ. प्र.)। यूं मीडिया के क्षेत्र में काम करने वालों की करतूतों से लगातार मीडिया की साख पर बट्टा लगा करता है। लेकिन लोग हैं कि अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहे। आलम ये है कि स्वयंभू बेदाग लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके साथ ही बड़ा सवाल यह भी है कि इन्हें पत्रकार माना जाय अथवा नहीं। खुद को पत्रकार की श्रेणी में रखने वाले बस्ती के एक पत्रकार ने ऐसा गंदा काम किया कि खुद ही मीडिया की सुर्खियां बन रहा है। ब्रेकिंग में कुछ भी परोसकर सुर्खियों में रहने वाले धर्मेन्द्र पाण्डेय नामक व्यक्ति के ऊपर दलाली में धन उगाही का एफआईआर दर्ज हुआ है। जिसके बाद इन्होंने रत्नेश्वर मिश्र के ऊपर सोशल मीडिया पर हमले तेज किये तो इनकी गिरफ्तारी की मांग होने लगी है। अंदर के समाचारों में आपको इनके ब्रेकिंग से जुड़े कुछ उदाहरण भी समझाने का प्रयास किया जायेगा। शायद आप कुछ समझ पायें।
बस्ती जिले के हर्रैया थाने में मुअसं. – 94 2025 पर भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 318(4), 316(2), 352, 351(2), 131, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता 3(1) (द) निवारण) अधिनियम, 1989 (संशोधन 2015), अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता 3(1) (ध) निवारण) अधिनियम, 1989 (संशोधन 2015), एवं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता 3(2) (va) निवारण) अधिनियम, 1989 (संशोधन 2015) के अन्तर्गत मुकदमा पंजीकृत किया गया है। ये एफआईआर पैकोलिया थाना क्षेत्र के साकिन दुबौलिया जीतीपुर निवासी अर्जुन पुत्र सरजू ने थाने पर दरख्वास्त देकर दर्ज कराई है। प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि अर्जुन और अब्दुल गफ्फार के बीच जमीनी विवाद न्यायालय से निस्तरण के बाद विपक्षी द्वारा कब्जा नहीं दिये जाने का मामला था। कब्जा दिलाने के नाम पर पत्रकार धर्मेन्द्र पाण्डेय (MO 9005104300) द्वारा प्रार्थी यानि अर्जुन से 30000/रु0. अपने बैंक अकाउन्ट मे दि० 14.11.24 को एवं दस हजार 6-12-24 को दस हजार रु. अपने खाते मे लिया। इसके बाद बीस हजार रु. नकद लिया है। इसके बाद भी अभी तक कब्जा भूमि पर नही दिला पाये। दि. 11-4-25 को शाम 4.30 बजे के लगभग मैं अपने पिता जी (जो जिला अस्पताल बस्ती में भर्ती है) को देखकर वापस आ रहा था तो हरैया गन्ना कांटे के पास उनसे अपना रुपया वापस मांगा, तो उन्होने नाराज होकर जाति सूचक शब्दों का प्रयोग करते हुये माँ बहन की भद्दी भद्दी गाली देते हुये कहे कि रुपया पैसा कुछ नही दूँगा। अगर दोबारा रुपया मांगा तो जान से मार दूंगा। चमार की जाति हमारा कुछ नहीं कर पाओगे। पुलिस मे हमारी पकड़ है। हम पत्रकार हैं। हमारा कुछ नहीं कर पाओगे। तब प्रार्थी श्रीमान जी की शरण में आया है। हमारी सुरक्षा एवं पत्रकार से रुपया वापस दिलाने मे सहयोग किया जाना आवश्यक एवं न्याय संगत है। तथा हमें मारने के लिये दौड़ा लिया। अतः श्रीमान जी से प्रार्थना है कि दोषी पत्रकार धर्मेन्द्र पाण्डेय के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत करके दण्डित करने की कृपा करें।
इसके बाद सोशल मीडिया पर जमकर गुबार निकल रहा है। उन्होंने रत्नेश्वर मिश्र पर अशोभनीय आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया पर लिखना शुरु किया है, जिस पर पलटवार भी हो रहा है और कहा जा रहा है कि खुद पर हुई कार्रवाई से बौखलाकर अपनी करनी पर पर्दा डालने की असफल कोशिश जा रही है। सवाल ये है कि जब कोई भी अनाड़ी व्यक्ति किसी प्रकार पत्रकार बनकर बिना कुछ सीखे पढ़े अपनी भूमिका में आता है, तो वह समाज के लिए नीम हकीम खतरे जान की तरह काम करता है। आजकल अक्सर सोशल मीडिया की ब्रेकिंग कुछ इस प्रकार होती है –
बस्ती से बिग ब्रेकिंग —
चौकी इंचार्ज को मिली बड़ी कामयाबी
बढ़ाया बस्ती पुलिस का मान
तीन शराब तस्कर गिरफ्तार
20 लीटर कच्ची शराब बरामद
गिरफ्तार करने वाली टीम में शामिल रहे आठ जांबाज
एसपी से पुलिस टीम को पुरस्कृत करने की मांग
पुरस्कार ना मिलने पर कर्मियों में आक्रोश
(यह एक उदाहरण मात्र है)
तब तक कोई और एक ब्रेकिंग डालता है –
बिग ब्रेकिंग बस्ती —
दबंग बीट सिपाही से जनता आतंकित
एसओ से लेकर बड़े अधिकारियों का नहीं है इसको खौफ
आखिर कब होगी कार्यवाही
कब मिलेगी जनता को पुलिसिया उत्पीड़न से मुक्ति
बड़ा सवाल
क्या सचमुच उसे नहीं है अधिकारियों का खौफ या है किसी खास का चहेता
इन खबरों से पत्रकारिता की कितनी और कैसी बू आ रही है, यह कहने की जरुरत नहीं है। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में पत्रकार के रुप में स्वयं की पहचान बताने वालों को समाज में संदेह की दृष्टि से देखे जाने की भी शुरूआत हो चुकी है। किसी भी क्षेत्र में काम करने आने से पहले उसकी मूल भावना और नैतिक सिद्धांतों को जाने बिना सिवाय गरिमा और चरित्र हनन के कुछ हासिल नहीं होने वाला।