
अयोध्या (उ. प्र.)। अंतरिक्ष तिवारी की कलम से, पत्रकारिता में भष्टाचार, गुंडागर्दी और अवैध कार्यों से कभी नहीं डरा। मैंने पत्रकार समाज के लिए, अपने लोगों के लिए आवाज़ उठाई – बिना थके, बिना झुके। पर आज जब वही पत्रकार, जिनकी पहचान सच्चाई को उजागर करना है, सत्ता, सिंडिकेट और भ्रष्टाचार की मिलीभगत में उलझे दिखाई देते हैं, तो मन भारी हो उठता है। कुछ ऐसे चेहरे, जो कलम के सिपाही कहलाते थे, आज झूठ को सच और सच को झूठ बनाने के सौदे करते दिखते हैं। जनता के हक़ की आवाज़ को दबाने का काम करने लगे हैं। दुख इस बात का नहीं कि लड़ाई कठिन है, बल्कि इस बात का है कि हम अपनों के बीच ही उलझते जा रहे हैं। अब समझ नहीं आता – करूं तो करूं क्या? लिखूं तो किसके खिलाफ? क्योंकि जिनके लिए हम लड़े, अगर उन्हीं के लिए कलम उठेगी, तो पूरा पत्रकार समाज बदनाम होगा। मैं जानता हूँ कि पत्रकारों से समाज बहुत उम्मीद रखता है, और रखना भी चाहिए – लेकिन ये भी उतना ही सच है कि पत्रकार भी इंसान होते हैं, जिनकी अपनी ज़िम्मेदारियाँ और मजबूरियाँ होती हैं।
कई बार पत्रकारों की कुछ मजबूरियाँ भी होती हैं। पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ और आर्थिक आवश्यकताएं उन्हें ऐसे मोड़ पर ले आती हैं, जहां वे स्वयं भी नहीं चाहते कि वे कुछ गलत करें या गलत का साथ दें लेकिन परिस्थितियाँ उन्हें मजबूर कर देती हैं। जब पेट और परिवार की आवश्यकता सामने खड़ी हो, तब मजबूरी कई बार उस रास्ते की ओर धकेल देती है, जिसे दिल स्वीकार नहीं करता। हर कोई चाहता है कि उसकी बात प्रकाशित हो – नेता, अधिकारी, पीड़ित व्यक्ति – लेकिन जब वही पत्रकार खुद समस्याओं में घिरता है, तो उसकी मदद के लिए कोई सामने नहीं आता।
आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियाँ उसे तोड़ने लगती हैं। हो सकता है कि कुछ पत्रकार इन्हीं हालातों में फंसकर कुछ ऐसा कर जाते हों जो वे स्वयं भी नहीं चाहते। इसलिए मैं किसी को पूरी तरह गलत नहीं ठहराता। हाँ, अगर कोई सुविधा-संपन्न होकर भी जानबूझकर गलत करता है, तो उसे दंड मिलना ही चाहिए। लेकिन जिनके पास विकल्प ही नहीं, उनके लिए सरकार, प्रशासन और समाज को मिलकर चिंतन करना होगा। अगर आप पत्रकारों से सच्चाई की लड़ाई की उम्मीद रखते हैं, तो आपको भी उनकी ज़रूरतों और सुरक्षा पर ध्यान देना होगा। उन्हें यह विश्वास दिलाइए कि वे अकेले नहीं हैं। अगर उन्हें भरोसा हो कि उनका परिवार सुरक्षित रहेगा, तो शायद उनकी कलम और निडर होकर चलेगी। सरकार, प्रशासन और समाज को गहन चिंतन करना चाहिए कि जो पत्रकार सच्चाई के लिए खड़ा है, कहीं वह अकेला तो नहीं पड़ गया? अगर वह हारा, तो हार सिर्फ उसकी नहीं होगी वह सच्चाई की हार होगी।