
बस्ती (उ. प्र.)। आमरण अनशन के छठें दिन आशीष शुक्ल की हालत बिगड़ गई, और प्रशासन के कान पर जूं नहीं रेंगी। शुगर लेबल और बीपी तेजी से गिर रहा था। एडीएम और एसडीएम अनशन स्थल पर पहुंचे जरुर लेकिन कोई सार्थक बात करने की जगह मात्र अस्पताल जाने का आग्रह करने की औपचारिकता निभाई। बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया और अनशन स्थल पर हल्का बल प्रयोग भी किया गया। उपचार के दौरान उनके खराब स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें लखनऊ रेफर कर दिया गया। चर्चाओं की मानें तो अनशन खत्म कराने की गरज से उन्हें लखनऊ रेफर किया गया है। सत्ता पक्ष पर आशीष के अनशन को तवज्जो नहीं देने का आरोप लग रहा है। जिसके चलते भाजपा के जिम्मेदारों द्वारा प्रशासन का बचाव करने की बात भी कही जा रही है।
भाजपा नेता आशीष शुक्ल अठारह जून 2025 से अनशन पर बैठे थे। 23 जून को छठां दिन था। उन्होंने अन्न का त्याग किया था। जब तक मांगे नहीं पूरी हो जातीं। मांगें तो नहीं पूरी हुईं, प्रशासन की कार्यवाही पूरी हो गयी। तबियत बिगड़ी तो प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी निभाई। अपना काम किया। यही तो आशीष शुक्ल कह रहे थे कि प्रशासन अपना काम समय से क्यों नहीं करता। प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाने की बजाय गम्भीर घटनाओं की प्रतीक्षा क्यों करता है। नतीजा समाज में वैमनस्य और हत्या, मारपीट और नृशंस घटनाओं की भरमार हो गयी। सरकारी मुलाजिमों की लापरवाही से दो सगे भाइयों ने विद्युत स्पर्शाघात से दम तोड़ दिया। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम कराकर विधिक कार्यवाही कर दी। राना दिनेश प्रताप सिंह के कड़े संघर्ष के बाद विद्युत विभाग के जेई ने लाइन मैन के विरूद्ध एफआईआर कराई। जबकि एफआईआर खुद जेई पर होना चाहिए था। इसी तरह जीतीपुर पैकोलिया का परी हत्याकांड, बैरिहवां चौराहे पर पुलिस की मौजूदगी में जमीन कब्जा करने के लिये नंगा नाच ऐसे कई मामले हैं, जो जनता के दिलो दिमाग में चुभ रहे हैं। इन्हीं सब मुद्दों को लेकर आशीष शुक्ल बस्ती कचहरी में शास्त्री चौक पर आमरण अनशन किया था।
जनहित के सवालों को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता आशीष शुक्ल ‘सैनिक’ का आमरण अनशन शास्त्री चौक पर छः: दिनों तक चला। आशीष शुक्ल की मांग कुछ खास नहीं थी।जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी मांग पत्र के आधार पर वार्ता कर समस्याओं के समाधान करते बस। इन्हें आम अवाम का भरपूर समर्थन मिल रहा था। क्योंकि मुद्दे जमीनी थे। इस कार्यप्रणाली से सभी त्रस्त हैं। ज्ञात रहे कि गिरती कानून व्यवस्था, हत्या, हिंसा, राजस्व, बिजली विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों की मनमानी, उत्पीड़न, धन उगाही आदि घटनाओं को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता आशीष शुक्ल ने आमरण अनशन किया है। बताते चलेें कि उनके अनशन में नगर थाना क्षेत्र के खुटहन गांव में दो सगे भाईयों की करंट, पैकोलिया थाना क्षेत्र के जीतीपुर गांव में बालिका की हत्या, लालगंज थाना क्षेत्र में मासूम दलित बालिका से दुराचार, बस्ती शहर के मालवीय रोड पर जमीनी विवाद , कोतवाली थाना क्षेत्र के कटेश्वर पार्क में बालिका के साथ दुराचार, उभाई में युवक की हत्या मामले में सीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दोषी पुलिस कर्मियों के विरूद्ध कार्रवाई किये जाने आदि मांगें शामिल हैं।
पत्रकार अनूप मिश्र ने फेसबुक पर लिखा है कि – शुभरात्री से पूर्व बस इतना ही की आशीष शुक्ल सैनिक को कृटीकल पोजीसन में बाहर भेजा गया है। उनके पूर्ण स्वस्थ होने तक अनशन स्थगित किया जाता है। आभार भाजपा के जिलाध्यक्ष विवेकानंद मिश्र, गौ सेवा आयोग में चयनित राज्य मंत्री महेश शुक्ल, हरैया विधायक अजय सिंह। अब आते है विपक्ष पर धन्यवाद समाजवादी पार्टी जिलाध्यक्ष महेंद्र नाथ यादव, सांसद रामप्रसाद चौधरी, दूधराम जी और राजेंद्र प्रसाद चौधरी…. जिनकी कृपा से आशीष शुक्ल सैनिक आज अनशन से उठाये गये। इसके लिये आप सभी का अभिनंदन और धन्यवाद….. डीएम, एसपी आप लोगों ने बता दिया कि हाँ बस्ती के हमहीं राजा है…. बाकी परजा पहुनि रोज नेताओं से ज्यादे हमारे यहाँ गोड़ धराई करती है….है न मुख्यमंत्री जी….। इनका ऐसा कहना सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों द्वारा प्रशासन को समर्थन दिये जाने की बातों की पुष्टि करता है।
सोशल मीडिया पर लोग खुलकर भारतीय जनता पार्टी की आलोचना कर रहे हैं। शायद भाजपाई होकर अनशन करना नागवार गुजरा हो और मामला प्रशासन के पक्ष में जाने के साथ विपक्ष का मददगार हो गया। गलती प्रशासन की फजीहत भाजपा की। क्योंकि सरकार इनकी है और प्रशासन इनकी पकड़ के बाहर। ऐसा दिख रहा है। जबकि प्रशासन कंट्रोल के बाहर नहीं है। प्रशासन को कंट्रोल करके अनशन को बेनतीजा या ये कहें कि फ्लाप करवाने की कोशिश की गयी। जिस बहती गंगा में विपक्ष भी हाथ धोने में पीछे नहीं रहा। बड़ा सवाल ये है कि जनता के ऐसे मुद्दों पर इस आचरण के साथ क्या भाजपा अपनी साख बचा पाएगी ? जिसके लिए जनता ने ऐसी सरकार को चुना है, उस जनता को क्या मिला। कैसे होगा जनता का कल्याण। जब अनशन और जनहित के मुद्दे राजनीति का शिकार होने लगें, तो सत्ता की नाकामी को छिपाने का कोई रास्ता नहीं दिखता।
सामाजिक कार्यकर्ता भृगुनाथ त्रिपाठी पंकज लिखते हैं कि – लोकतंत्र व गणतंत्र का मजाक बना रहे बस्ती के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक का धरना स्थल पर अब तक न आना इस भारत जैसे सबसे बड़े गणतंत्र और महान लोकतांत्रिक देश के लिए बड़ा ही चिंताजनक विषय है। जनता की सेवा के लिये नौकरी करने वाले ये नौकरशाह जनहित की बात नही सुनने को तैयार हैं। बस्ती में भ्रष्टाचार चरम पर है, सरकारी योजनाएं वेंटीलेटर पर हैं, क्राइम की स्थिति तो ऐसी है जैसे लगता है कि लोगों में पुलिस का डर ही समाप्त है। जिले के जिम्मेदार अधिकारी जो जनता की सेवा करने का वेतन पाते हैं वो जनता से ही अकड़े हुए घूम रहे हैं, हर तरफ बस घूस का बोलबाला है। जिले के जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी गम्भीरता नही दिखा रहे हैं, जिले के प्रभारी मंत्री आशीष पटेल बस्ती आते हैं और योग दिवस की फोटो कराते हैं चले जाते हैं उन्हें जनहित के इस धरने की खोज खबर तक लेने की फुर्सत नही है, क्या भाजपा जिलाध्यक्ष ने उन्हें धरने के विषय मे बताया नही या भाजपा इस प्रकरण में प्रशासन के साथ है। अच्छा होता कि जिले के जिम्मेदार लोग, जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के लग्गू झग्गू उन्हें समझाते कि आशीष कुमार शुक्ल सैनिक की बातें धरना स्थल पर जाकर सुनें और लोकतंत्र की मर्यादा बचाएं। उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया है, कहीं इस संवेदनाओं से हीन जनता की संवेदनाएँ आशीष कुमार शुक्ल को लेकर जाग गईं तो प्रशासन के लिए लोहे के चने चबाने जितना होगा यह आंदोलन।